करेंट अफेयर्स – 30 अगस्त, 2020

 

राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान – एशिया

प्रीलिम्स के लिये NDC- TPA कार्यक्रम, ग्रीनहाउस गैस, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान मेन्स के लिये कार्बनीकृत परिवहन संबंधी पहलों की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC)- एशिया के लिये परिवहन पहल (TPA) के भारत घटक को लॉन्च किया है।

 

प्रमुख बिंदु

§  राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान – एशिया के लिये परिवहन पहल (NDC- TPA)

  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान – एशिया के लिये परिवहन पहल (NDC- TPA) का उद्देश्य भारत, वियतनाम और चीन में गैर कार्बनीकृत परिवहन को प्रोत्साहन देने हेतु एक व्यापक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है।
    • इस कार्यक्रम की अवधि 4 वर्ष की है और यह कार्यक्रम विभिन्न हितधारकों के साथ समन्वय कर तमाम तरह के हस्तक्षेपों के माध्यम से भारत तथा अन्य भागीदार देशों को अपने दीर्घकालीन लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करेगा।

§  कार्यान्वयन

  • यह एक संयुक्त कार्यक्रम है, जिसे जर्मनी के पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण एवं परमाणु सुरक्षा मंत्रालय की अंतर्राष्ट्रीय जलवायु पहल (International Climate Initiative-IKI) का समर्थन प्राप्त है और इस कार्यक्रम को 7 अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के समूह द्वारा लागू किया जाएगा।
    • इस कार्यक्रम के भारतीय घटक को कार्यान्वित करने के लिये भारत सरकार की ओर से नीति आयोग कार्यान्वयन भागीदार के रूप में कार्य करेगा।

§  लक्ष्य

  • ग्रीनहाउस गैस और परिवहन मॉडलिंग की क्षमता को मज़बूत करना
    • देश में गैरकार्बनीकृत परिवहन हेतु हितधारकों के लिये संवाद मंच की शुरुआत करना
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये तकनीकी सहयोग प्रदान करना
    • जलवायु परिवर्तन से निपटने में परिवहन क्षेत्र संबंधी कार्यों का वित्तपोषण करना
    • इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicle-EV) की मांग और आपूर्ति नीति पर नीतिगत सिफारिश करना

§  लाभ

  • यह कार्यक्रम देश में इलेक्ट्रिक गतिशीलता (Electric Mobility) को बढ़ावा देने में मदद करेगा
    • इस कार्यक्रम से नीतिगत विकास, इलेक्ट्रिक वाहन बुनियादी ढाँचे के विकास और भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के बड़े स्तर पर प्रयोग को समर्थन मिलेगा।

§  भारतीय परिवहन क्षेत्र

  • भारत में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रोड नेटवर्क मौजूद है जो परिवहन के सभी माध्यमों द्वारा अधिकतम ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन करता है।
    • तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के चलते वाहनों की बिक्री भी तेज़ी से बढ़ रही है और वर्ष 2030 तक कुल वाहनों की संख्या में दोगुनी वृद्धि होने की संभावना है।
    • ऐसी स्थिति में पेरिस समझौते के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भारत के परिवहन क्षेत्र के लिये कार्बनीकृत परिवहन की नीति को अपनाना आवश्यक है।

स्रोत: पी.आई.बी

 

COVID-19 के दौरान परीक्षा अनिवार्यता उच्चतम न्यायलय का निर्णय

प्रीलिम्स के लिये: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, आपदा प्रबंधन अधिनियम, मेन्स के लिये: परीक्षा आयोजन के संदर्भ में विश्वविद्यालय और UGC के अधिकार

 

चर्चा में क्यों?

हाल ही सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया है कि विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा से जुड़े अन्य संस्थान आतंरिक या अन्य मानदंडों के आधार पर अंतिम वर्ष के छात्रों को डिग्री नहीं दे सकते तथा इसके लिये संस्थानों द्वारा अंतिम वर्ष की परीक्षाओं का आयोजन अनिवार्य होगा।

प्रमुख बिंदु:

  • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ (Disaster Management Act, 2005) के तहत राज्यों को यह अधिकार है कि वे COVID-19 महामारी के बीच मानव जीवन की रक्षा हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) द्वारा जारी परीक्षा दिशा-निर्देशों की अवहेलना कर सकते हैं।
  • हालाँकि उच्चतम न्यायालय ने यह भी माना कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत राज्यों को बिना परीक्षा आयोजित किये आतंरिक मूल्यांकन के आधार पर ही छात्रों को प्रोन्नति (Promote) प्रदान करने का अधिकार नहीं है।
    • गौरतलब है कि हाल ही में महाराष्ट्र और दिल्ली सरकारों द्वारा परीक्षाओं को रद्द करने तथा छात्रों को अन्य मापदंडों के आधार पर प्रोन्नति प्रदान करने का निर्णय लिया गया था।
  • न्यायालय ने निर्देश दिया है कि यदि भविष्य में राज्यों को लगता है कि 30 सितंबर तक परीक्षाओं को आयोजित करना संभव नहीं होगा और वे परीक्षाओं को विलंबित करना चाहते हैं, तो वे इस संदर्भ में UGC से संपर्क कर सकते हैं।

पृष्ठभूमि:

  • ध्यातव्य है कि UGC द्वारा 6 जुलाई, 2020 को जारी एक दिशा-निर्देश में देश के सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ आयोजित करने का निर्देश दिया गया था।
  • UGC के इस फैसले के विरूद्ध 30 से अधिक छात्रों ने उच्चतम न्यायलय में याचिका दायर की थी।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने उच्चतम न्यायलय के समक्ष COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं के साथ ऑनलाइन परीक्षाओं हेतु  इंटरनेट तथा अन्य आवश्यक संसाधनों की चुनौती का मुद्दा उठाया था।
  • इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्त्व वाली तीन सदस्यीय न्यायाधीश पीठ द्वारा की गई।

 

UCC के फैसले का समर्थन:

  • उच्चतम न्यायलय ने इस आरोप को स्वीकार नहीं किया कि UGC द्वारा जारी संशोधित दिशा निर्देश  में COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों की ध्यान में नहीं रखा गया या यह संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत  छात्रों और परीक्षकों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन था।
  • इसके लिये न्यायलय ने कई तर्क भी दिये जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं –
    • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, 6 जुलाई को जारी दिशा निर्देशों को छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए आर.सी कुहड़ विशेषज्ञ समिति (R.C. Kuhad Expert Committee) की सिफारिशों  के आधार पर तैयार किया गया था।
    • UGC द्वारा जारी दिशा निर्देशों में तीन तरीकों की स्वीकृति दी गई थी- कलम और कागज (Pen and Paper), ऑनलाइन (Online) तथा मिश्रित (भौतिक एवं ऑनलाइन दोनों)। साथ ही परीक्षा देने में असमर्थ छात्रों को एक “विशेष मौका” भी दिया गया था।
    • विश्वविद्यालयों को परीक्षाओं की तैयारी के लिये 31 जुलाई से 30 सितंबर तक का समय भी  दिया गया था।
    • UGC द्वारा जारी दिशा निर्देशों के तहत खंड-6 में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि परीक्षाओं का आयोजन विश्वविद्यालय सुरक्षा प्रोटोकॉल के पालन के बाद ही किया जा सकता है।
    • उच्चतम न्यायलय ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि COVID-19 महामारी और विश्वविद्यालयों की चुनौतियों को देखते हुए ही पूर्व में निर्धारित 31 जुलाई की तिथि को बढ़ाकर 30 सितंबर कर दिया गया था

 

शैक्षणिक कैलेण्डर में एकरूपता :

  • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, कुछ राज्यों में COVID-19 के कारण खराब स्थिति होने के बावजूद भी परीक्षाओं की एक सामान तिथि के निर्धारण का निर्णय UGC के अधिकार क्षेत्र का हिस्सा है और यह उच्च शिक्षा के संस्थानों में मानकों का निर्धारण तथा उनके समन्वय के लिये आवश्यक है।
  • उच्चतम न्यायालय ने UGC द्वारा पूरे देश शैक्षणिक कैलेंडर में एकरूपता बनाए रखने हेतु अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के आयोजन हेतु समान तिथि के निर्धारण को सही बताया।
  • याचिकाकर्ताओं ने कहा कि संशोधित दिशा निर्देश दो मामलों में संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन करते हैं-
  • देश के अलग-अलग हिस्सों की परिस्थितियों को ध्यान में रखे बिना पूरे देश में परीक्षाओं के लिये एक तिथि का निर्धारण।
  • 2- अंतिम वर्ष के छात्रों को परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्यता, अंतिम वर्ष और अन्य (प्रथम/द्वितीय वर्ष) छात्रों के बीच भेदभाव है।
  • उच्चतम न्यायलय के अनुसार, UGC ने 6 जुलाई के दिशा निर्देशों में अंतिम वर्ष के छात्रों को परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्यता निर्धारित कर उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया है क्योंकि अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ छात्रों को अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने का अवसर प्रदान करती हैं और यह शिक्षा अथवा रोज़गार के क्षेत्र में उसके भविष्य का निर्धारण करती हैं।

 

परीक्षा तिथि निर्धारण के संबंध में UGC के अधिकार:

  • उच्चतम न्यायलय के अनुसार, UGC 6 जुलाई के दिशा निर्देशों को जारी करने से पहले राज्यों अथवा विश्वविद्यालयों से परामर्श करने के लिये बाध्य नहीं था।
  • राज्य और विश्वविद्यालय UGC के दिशा निर्देशों को मात्र सुझाव बताकर इसे खारिज नहीं कर सकते हैं।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के ‘औपचारिक शिक्षा के माध्यम से परास्नातक उपाधि प्रदान करने संबंधी निर्देशों के न्यूनतम मानक विनियम, 2003’ के तहत विश्वविद्यालयों द्वारा UGC के दिशा निर्देशों को अपनाना अनिवार्य है।
  • गौरतलब है कि 31 जुलाई को उच्चतम न्यायालय में UGC द्वारा प्रस्तुत शपथ-पत्र के अनुसार,  देश के 818 विश्वविद्यालयों में से 603 में या तो अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ आयोजित की जा चुकी थीं या वे अगस्त-सितंबर में इन्हें आयोजित करने की तैयारी कर रहे थे।

 

निष्कर्ष:

COVID-19 महामारी के कारण अन्य क्षेत्रों के साथ शिक्षा के क्षेत्र पर भी गंभीर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है। इस महामारी के दौरान परीक्षाओं का आयोजन छात्रों के साथ-साथ शिक्षा संस्थानों के लिये भी एक बड़ी चुनौती है। हालाँकि देश भर में शिक्षित कैलेण्डर में एकरूपता बनाए रखने और छात्रों के भविष्य को देखते हुए परीक्षाओं का आयोजन आवश्यक है परंतु सरकार को वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए सभी हितधारकों के सहयोग से इस समस्या के समाधान विशेष विकल्पों पर पुनः विचार चाहिये।

स्त्रोत: द हिंदू

 

कृषि अध्यादेश का विरोध:

प्रीलिम्स के लिये: विद्युत (संशोधन) विधेयक, आत्मनिर्भर भारत अभियान, कृषि अवसंरचना कोष , ‘ई-नाम’ मेन्स के लिये: सहकारी संघवाद, केंद्र और राज्य सरकार की शक्तियों से संबंधित प्रश्न

 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंजाब सरकार ने विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत कृषि अध्यादेशों और प्रस्तावित विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020 को खारिज कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि COVID-19 महामारी से निपटने हेतु केंद्र सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत कृषि क्षेत्र में 11 महत्त्वपूर्ण सुधारों की घोषणा की गई थी।
  • केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने और कृषि आय को दोगुना करने के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु इन सुधारों के तहत कृषि क्षेत्र के लिये एक लाख करोड़ रुपए के फंड की घोषणा के साथ कुछ कानूनी सुधारों की भी घोषणा की गई थी।
  • कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020’:

    • इस अध्यादेश का उद्देश्य किसानों और व्यापारियों को कृषि उत्पाद विपणन समिति’ (Agricultural Produce Market Committee- APMC) की सीमाओं से बाहर व्यापार के अतिरिक्त अवसर उपलब्ध करना था
    • यह अध्यादेश राज्य कृषि उत्पादन विपणन संघों के तहत अधिसूचित बाज़ारों के बाहर अवरोध मुक्त अंतर-राजकीय व्यापार और वाणिज्य को भी बढ़ावा देता है।
    • साथ ही या किसानों को अपनी सुविधा के अनुसार कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  • मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020’:

    • इस अध्यादेश में भारतीय कृषि क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों (छोटी जोत, मौसम पर निर्भरता और बाज़ार की अनिश्चितता आदि) को दूर करने के उद्देश्य से कुछ सुधार प्रस्तावित किये गए हैं।
    • इस अध्यादेश में किसानों को अपनी उपज की बिक्री हेतु सीधे प्रसंस्करणकर्त्ताओं, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि से जुड़ने की व्यवस्था दी गई है।
  • आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020:

    • इस अध्यादेश के माध्यम से सरकार ने अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्‍याज और आलू आदि को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रस्ताव किया था।
  • विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020:

    • केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020 में राज्य विद्युत नियामक आयोगों के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति हेतु अलग-अलग चयन समिति के स्थान पर एक राष्ट्रीय चयन समिति के गठन का प्रस्ताव किया गया। साथ ही इस विधेयक में विद्युत् वितरण प्रणाली को मज़बूत बनाने हेतु डिस्कॉम (DISCOM) कंपनियों को राज्य विद्युत नियामक आयोग की अनुमति के आधार पर किसी क्षेत्र विशेष में सब-लाइसेंस जारी करने का विकल्प प्रदान किया गया।

आपत्तियाँ:

  • ‘मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020’, के तहत राज्य सरकारों को इस अध्यादेश के तहत किये गए किसी भी कारोबार के लिये किसानों, व्यापारियों या इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर किसी भी प्रकार का शुल्क या उपकर लगाने से प्रतिबंधित करता है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, कृषि क्षेत्र में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित अध्यादेशों से कृषि उपज से राज्यों को होने वाली आय के साथ राज्य सरकारों के हस्तक्षेप की शक्ति में कटौती होगी।
  • कई राज्यों ने विद्युत संशोधन विधेयक में राष्ट्रीय चयन समिति के गठन के प्रावधान को शक्ति के केंद्रीकरण का प्रयास बताया है।
  • पंजाब के मुख्यमंत्री ने विधानसभा में इस प्रस्ताव को प्रस्तुत करते हुए केंद्र सरकार द्वारा पारित अध्यादेशों और विद्युत (संशोधन) विधेयक को राज्य के लोगों (विशेषकर किसानों और मज़दूरों) के हितों के साथ भारतीय संविधान के खिलाफ बताया है।
  • उन्होंने कहा कि संविधान की सूची-II (राज्य सूची) की प्रविष्टि-14 के तहत कृषि को राज्य के विषय के रूप में शामिल किया गया है , अतः केंद्र सरकार का निर्णय राज्य के कार्यों में हस्तक्षेप के साथ संविधान में निहित सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) की भावना के खिलाफ है।
  • पंजाब सरकार ने केंद्र सरकार से इन अध्यादेशों को वापस लेते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न और अन्य कृषि उत्पादों की खरीद हेतु नए अध्यादेश जारी करने का आग्रह किया है।

आगे की राह:

  • वर्तमान में भी देश में किसानों की एक बड़ी आबादी के पास छोटी जोत है और उनके पास आधुनिक उपकरणों का अभाव है, ऐसे में सरकार को कृषि में वैज्ञानिक पद्धति के उपयोग और नवीन उपकरणों हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिये।
  • सरकार द्वारा कृषि अवसंरचना कोष (Agriculture Infrastructure Fund-AIF) की स्थापना का निर्णय इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिये जाने के साथ APMC में आवश्यक सुधारों के साथ ‘ई-नाम’ (e-NAM) जैसे नवीन प्रयासों को आगे ले जाने पर विशेष बल देना चाहिये।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत राज्य और केंद्र सरकार की विधायी शक्तियों की व्याख्या की गई है।संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत तीन प्रकार की सूचियों को शामिल किया गया है।संघ सूची (Union List)राज्य सूची (State List)समवर्ती सूची (Concurrent List) संघ सूची (Union List): इस सूची में राष्ट्रीय महत्त्व के ऐसे विषयों को शामिल किया गया है। इस सूची में शामिल विषयों पर केवल संसद को कानून बनाये का अधिकार दिया गया है। इस सूची में रक्षा, विदेशी मामलों, बैंकिंग,संचार और मुद्रा आदिको शामिल किया गया है। राज्य सूची (State List): स्थानीय महत्व के विषय (जैसे पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाईआदि) को शामिल किया गया है। इस सूची में शामिल विषयों पर राज्य विधान सभा को कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। समवर्ती सूची (Concurrent List): इस सूची में उन विषयों को शामिल किया गया , है जिनमें केंद्र व राज्य दोनों की ही भागीदारी की आवश्यकता होती है। समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर संसद और राज्य विधानसभा दोनों को कानून बनाने का अधिकार है। इस सूची में शिक्षा, वन, व्यापार संघ, विवाह आदि विषयों को शामिल किया गया है।

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