रेनाति चोल कालीन दुर्लभ शिलालेख की खोज
(Rare Renati Chola era inscription unearthed)
संदर्भ:
हाल ही में, आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले के एक दूरदराज के गांव एक दुर्लभ शिलालेख की खोज हुई है।
प्रमुख बिंदु:
- यह एक डोलोमाइट शिलापट्ट तथा शेल पर उत्कीर्ण है।
- इस शिलालेख को पुरातन तेलुगु लिपि में लिखा गया है।
- इस शिलालेख का समयकाल 8 वीं शताब्दी ईस्वी निर्धारित किया गया है, इस समय इस क्षेत्र में रेनाडू के चोल महाराजा का शासन था।
शिलालेख पर उत्कीर्ण विषय
इसमें, यह पिडुकुला गाँव के एक मंदिर में सेवा करने वाले ब्राह्मण सिद्यामायु (Sidyamayu) को उपहार में दी गई छह मार्तुस (Marttus – माप की एक इकाई) भूमि के रिकॉर्ड का विवरण दिया गया है।
- शिलालेख की अंतिम पंक्तियाँ उस समय काल में ‘नैतिकता’ को दी जाने वाली प्राथमिकता का संकेत करती हैं।
- इसमें कहा गया है कि ‘जो लोग इस शिलालेख को भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख्नेगे, उन्हें ‘अश्वमेध यज्ञ’ करने के सामान पुण्य की प्राप्ति होगी तथा जो इसे नष्ट करेंगे उन्हें वाराणसी में हत्या का कारण बनने के बराबर पाप के भागी होंगे।
रेनाति चोल कौन थे?
- रेनाडु (Renadu) के तेलुगु चोल (जिन्हें रेनाति चोल भी कहा जाता है) रेनाडू क्षेत्र पर शासन करते थे, वर्तमान में यह क्षेत्र कुडप्पा जिले के अंतर्गत आता है।
- प्रारंभ में ये स्वतंत्र शासक थे, किंतु बाद में इन्हें पूर्वी चालुक्यों की अधीनता स्वीकार करनी पडी।
- उन्हें सातवीं और आठवीं शताब्दी से संबंधित शिलालेखों में तेलुगु भाषा उपयोग करने का अद्वितीय गौरव प्राप्त है।
- इस वंश का प्रथम शासक नंदिवर्मन (500 ईस्वी) था, जिसे करिकेल वंश तथा कश्यप गोत्र का बताया जाता है।
- इनका राज्य पूरे कुडप्पा जिले तथा आसपास के अनंतपुर, कुर्नूल और चित्तूर जिले के क्षेत्रों में था।
चोल कालीन स्थानीय प्रशासन:
- चोल प्रशासन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता जिलों, कस्बों और गांवों के स्तर पर स्थानीय प्रशासन था।
- उत्तिरमेरूर शिलालेख से चोल प्रशासन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का पाता चलता है।
- चोल प्रशासनिक प्रणाली की सबसे अद्वितीय विशेषता ‘ग्राम स्वायत्तता’ थी।
- चोलों की महत्वपूर्ण प्रशासनिक इकाइयों में से एक ‘नाडु’ (Nadu) था। नाडु में प्रतिनिधि सभाएँ होती थीं। नाडुओं के प्रमुखों को नत्तार (Nattars) कहा जाता था।
- नाडु परिषद को नट्टावई (Nattavai) कहा जाता था।
वारियम (Variyams)
- चोल कालीन शासन व्यवस्था में ‘वारियम‘ एक प्रकार की कार्यकारिणी समिति थी।
- ग्राम सभाएं, वारियम की सहायता से ग्राम प्रशासन का संचालन करती थी।
- समाज के पुरुष सदस्य इन वरियाम के सदस्य होते थे।