डेली करेंट अफेयर्स – 02 सितंबर 2020

समीक्षा याचिका (Review Petition)


संदर्भ:

हाल ही में, उच्चत्तम न्यायालय द्वारा वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण पर अवमानना ​​मामले में 1 रुपए का जुर्माना लगाया है। जुर्माना नहीं देने पर उन्हें तीन महीने की कैद होगी तथा तीन साल के लिए वकालत प्रैक्टिस करने से वंचित किया जाएगा।

पृष्ठभूमि:

न्यायालय ने प्रशांत भूषण मांगने से इंकार करने तथा कई बहसों के पश्चात, 25 अगस्त अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

आगे क्या?

प्रशांत भूषण जुर्माना देने के लिए तैयार हो गए है, किंतु उन्होंने अपनी ‘दोषसिद्धि’ के विरुद्ध एक समीक्षा याचिका दायर करने की बात कही है।

समीक्षा / पुनर्विचार याचिका (Review Petition) क्या है?

संविधान के अनुसार, उच्चत्तम न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय देश का क़ानून बन जाता है। यह निर्णय अंतिम होता है तथा यह भविष्य में सुनवाई हेतु आए मामलों पर निर्णय देने के लिए तथ्य प्रदान करता है।

  • हालाँकि अनुच्छेद 137 के तहत उच्चत्तम न्यायालय को अपने किसी भी निर्णय या आदेश की समीक्षा करने की शक्ति प्राप्त है। उच्चत्तम न्यायालय के अंतिम प्राधिकरण संबधी स्थिति में यह विचलन किसी विशिष्ट तथा संकीर्ण आधार होने पर ही किया जाता है।
  • इसलिए, जब किसी निर्णय की समीक्षा की जाती है, तो नियम यह होता है, कि उस मामले में नए साक्ष्यों को अनुमति नहीं दी जाती है, परन्तु न्याय देने में हुई गंभीर त्रुटियों को ठीक किया जाता है।

समीक्षा याचिका कब स्वीकार की जा सकती है?

वर्ष 1975  में एक मामले में तत्कालीन न्यायमूर्ति कृष्ण/कृष्णा अय्यर ने निर्णय देते हुए कहा था कि किसी समीक्षा याचिका को तभी स्वीकार किया जा सकता है जब न्यायालय द्वारा दिये गए किसी निर्णय में भयावह चूक या अस्पष्टता जैसी स्थिति उत्पन्न हुई हो।

  • समीक्षा, किसी भी प्रकार से एक अपील नहीं होती है।
  • अर्थात, न्यायालय अपने पूर्व के निर्णय में निहित ‘स्पष्टता का अभाव’ तथा ‘महत्त्वहीन आशय’ की गौण त्रुटियों की समीक्षा कर उसमें सुधार कर सकता है।

समीक्षा याचिका किस प्राकर दायर की जाती है?

नागरिक प्रक्रिया संहिता और उच्चतम न्यायालय के नियमों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो फैसले से असंतुष्ट हैसमीक्षा याचिका दायर कर सकता है। इरका अर्थ है, कि समीक्षा याचिका दायर करने के लिए व्यक्ति का उक्त मामले में पक्षकार होना अनिवार्य नहीं होता है।

समीक्षा याचिका, निर्णय या आदेश की तारीख के 30 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिये।

कुछ परिस्थितियों में, न्यायालय समीक्षा याचिका दायर करने की देरी को माफ़ कर सकती है यदि याचिकाकर्ता देरी के उचित कारणों को अदालत के सम्मुख प्रदर्शित करे।

  1. समीक्षा याचिका निर्णय की तारीख के 30 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिये।
  2. कुछ परिस्थितियों में, याचिकाकर्ता द्वारा देरी के उचित कारणों को न्यायालय के समक्ष पेश करने पर, न्यायालय समीक्षा याचिका दायर करने की देरी को माफ़ कर सकती है।

समीक्षा याचिका हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया:

  1. न्यायालय के नियमों के अनुसार, ‘समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई वकीलों की मौखिक दलीलों के बिना की जाएगी’। सुनवाई न्यायधीशों द्वारा उनके चैम्बरों में की जा सकती है।
  2. समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई, व्यवहारिक रूप से न्यायाधीशों के संयोजन से अथवा उन न्यायधीशों द्वारा भी की जा सकती है जिन्होंने उन पर निर्णय दिया था।
  3. यदि कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्त या अनुपस्थित होता है तो वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए प्रतिस्थापन किया जा सकता है।
  4. अपवाद के रूप में, न्यायालय मौखिक सुनवाई की अनुमति भी प्रदान करता है। वर्ष 2014 के एक मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि “मृत्युदंड” के सभी मामलों संबधी समीक्षा याचिकाओं पर सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा खुली अदालत में की जाएगी।

समीक्षा याचिका के असफल होने के बाद विकल्प:

  • रूपा हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा मामले (2002) में, उच्चत्तम न्यायालय ने एक क्यूरेटिव पिटीशन की अवधारणा विकसित की, जिसे पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद सुना जा सकता है।
  • क्यूरेटिव पिटीशन / उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई तभी होती है जब याचिकाकर्त्ता यह प्रमाणित कर सके कि उसके मामले में न्यायालय के फैसले से न्याय के नैसर्गिक सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है साथ ही अदालत द्वारा निर्णय/आदेश जारी करते समय उसे नहीं सुना गया है।

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