श्री नारायण गुरु
संदर्भ:
दो सितंबर को श्री नारायण गुरु की 164 वीं जयंती मनाई गई।
कौन थे श्री नारायण गुरु?
नारायण गुरु (1856 – 1928) भारत के महान संत एवं समाजसुधारक थे। उन्हें तत्कालीन केरल के सामाजिक ताने-बाने को बदलने तथा केरलवासियों की मान्यताओं को बदलने का श्रेय दिया जाता है।
उनका जन्म एक एझावा परिवार हुआ था, उस समय इस समुदाय के लोगों को अवर्ण माना जाता था तथा जातिवाद से ग्रसित केरल के समाज में इन्हें सामाजिक अन्याय का अत्याधिक सामना करना पड़ा।
सामाजिक सुधार आंदोलन:
- उन्होंने केरल में समाज सुधार आंदोलन का नेतृत्व किया तथा जातिवाद को खारिज करते हुए आध्यात्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक समानता के नए मूल्यों को बढ़ावा दिया।
- उन्होंने दलित वर्गों के आध्यात्मिक और सामाजिक उत्थान की आवश्यकता पर बल दिया तथा अपने प्रयासों से कई मंदिरों तथा शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की।
- इसी क्रम में उन्होंने रूढ़िवादी हिंदू समाज में व्याप्त अंधविश्वासों का खंडन किया।
- उन्होंने जाति और संप्रदाय की सीमाओं से परे मानवजाति के ‘ऐक्य’ होने का उपदेश दिया।
- वर्ष 1888 में, उन्होंने केरल के अरविप्पुरम (Aravippuram) में एक शिव मूर्ति की स्थापना की, और यह साबित किया कि, भगवान की मूर्ति का प्रतिष्ठापन केवल ब्राह्मणों का अधिकार नहीं है। इसे अरविप्पुरम आंदोलन के रूप में जाना जाता है।
- उन्होंने एक मंदिर में कलावनकोड (Kalavancode) की प्रतिष्ठापना की, जिसमे उन्होंने मूर्तियों के स्थान पर दर्पण को रखा। इससे उन्होंने संदेश दिया कि परमात्मा प्रत्येक व्यक्ति के भीतर निवास करता है।
- उन्होंने कालाडी में ‘अद्वैत आश्रम’ की भी स्थापना की।
- उन्होंने वायकोम सत्याग्रह (1924–25) में अपना असहयोग दिया, इसका उद्देश्य त्रावणकोर में मंदिर में निम्न जातियों के लिए प्रवेश दिलाना था। इस दौरान महात्मा गांधी की नारायण गुरु से भेंट हुई।
महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्य:
उन्होंने कई महत्वपूर्ण साहित्यिक रचनाओं की रचना की, जिनमे से वर्ष 1897 में रचित आत्मोपदेश सतकाम सबसे प्रभावशाली हैं।